मंगलवार, 26 जुलाई 2016

मैं नहीं पढूँगा



मैं अरुण कक्षा में था। प्रार्थना हो रही थी। कुछ बच्चे शान्त भाव बैठ कर प्रार्थना सुन रहे थे, कुछ एक दूसरे की ओर देखते हुए इशारे कर रहे थे, कुछ बच्चे आहिस्ता-आहिस्ता बोल भी रहे थे। पर ओम अपने पीछे वाले बच्चे को तंग करने में मगन था। प्रार्थना के समाप्त होते ही मैं उसके पास गया और उसे गुस्से से देखते हुए एक चपत लगाई और पूछा - "क्या कर रहे थे प्रार्थना के वक्त। सीधा बैठौ।" मैंने पढाई आरंभ की।
श्यामपट पर अ से ञ तक लिखकर बच्चों से पूछा - "यह सब किसे पढ़ने आ गया?" कई बच्चे आगे आए और उन्होंने श्यामपट में देखते हुए पढ़कर सुना दिया। ओम ने कहा - "मुझे आपने मारा था, इसलिए मैं नहीं आऊँगा।"

मैंने उसे हँसते हुए देखा और कहा - "नहीं पढोगे तो फेल हो जाओगे। चलो जल्दी आओ।"
पर वह अपनी जगह से नहीं हिला।
"आते हो कि नहीं?" मैं छड़ी लेकर उसकी ओर लपका।

वह दौड़कर श्याम पट के पास चला गया। और हँसने लगा। मैंने कहा - "चलो पढ़ो।" और उसने सभी पढ़कर सुना दिया। ऐसे होते हैं बच्चे मन के सच्चे।


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