सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

सरस्वती पूजा



पिछले वर्षों की तरह इस बार भी शुक्रवार को वसंत पंचमी का उत्सव मनाया गया। वसंत पंचमी में माँ सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है। इस पूजा का महत्त्व विद्यालयों में आवश्यक लगता है। विद्यालय के शिक्षक मिलकर विधिवत तैयारी करते हैं और पूरे श्रद्धा और धूमधाम के साथ विद्या की देवी की पूजा-अर्चना संपन्न करते हैं।

इस पूजा को अपने कॉलोनियों के आस-पास भी देखा जाता है। दो-चार लड़के आपस में मिलकर टोली बनाई और तैयारी शुरू कर दी। विभिन्न प्रकार की सजावट-रूपरेखा आदि देखने को मिलती है। इस पूजा में बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है। इस पूजा में स्वतंत्रतापूर्वक अपनी-अपनी कल्पनाओं को साकार करने के लिए बच्चे की उत्सुकता देखते ही बनती है।

इस पूजा में सजावट और पूजा के साथ धूम-धडाका भी चाहिए। डिस्को, पॉप, रॉक, डीजे और पता नहीं क्या-क्या संगीत बजाये जाते हैं। इन संगीतों के ताल पर नाचते हैं। उछल-कूद करते हैं।
धीरे-धीरे पूजकों के दलों की संख्या बढ़ रही है। इससे मूर्त्तियाँ बनानेवाले कलाकारों को भी अच्छा-खासा रोजगार हो रहा है। पूजन सामग्री वाले दुकानदारों और पंडितों के भी वारे-न्यारे हो जाते हैं।

इस पूजा में कुछ खलनेवाली बातें भी हैं। पूजन टोलियों की संख्या अधिक होती जा रही है। इस बार मेरे घर तीन पूजन टोली पहुँच गई। सभी 51-51 रुपये की माँग कर रहे थे। पर जैसे-तैसे समझा-बुझाकर 10-10 रुपये देकर उन्हें विदा किया। हर महीने दो-तीन लोग किसी-न-किसी बहाने चंदा माँगने पहुँच जाते हैं। चंदा न देने पर लड़ाई-झगड़ा पर उतर आते हैं।

दूसरी खलनेवाली बात है – साउण्ड। माँ सरस्वती विद्या की देवी हैं। हमें उनसे विद्या की माँग नम्रतापूर्वक पूरी श्रद्धा से करनी है। विद्या की देवी को खुश करना है। उनके सामने ‘चिकनी चमेली...’, ‘सटा ले सैंया फेविकोल से...’ आदि गाना लगाकर भौंड़े तरीके से उछल-कूद करने से वे खुश हो जाएंगी? ऐसा प्रतीत होता है, हम पूजा नहीं, अपनी मौज-मस्ती के लिए पूजा का स्वाँग कर रहे हैं। ऐसे गानों को कानफाड़ू आवाज में लगाकर अपने भावी भविष्यों के संस्कार बिगाड़ रहे हैं। अगल-बगल के लोगों को ऊँजी आवाज से परेशान कर रहे हैं। आपस में वैमनस्य में वृद्धि कर रहे हैं। पर्यावरण दूषित कर रहे हैं।
ऐसे कार्यक्रमों (पूजा नहीं) से इन बच्चों को रोकना ही उचित है। सरस्वती पूजा अपने-अपने विद्यालयों में ही उचित है। वहाँ अपने शिक्षक के निर्देशन में पूजा करें। या अपने-अपने घर में अपनी शक्ति-क्षमता के आधार पर करें, चंदा माँगकर नहीं। इससे पूजा को सही स्वरूप मिल सकेगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें