ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणि निषेवते।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवाणि नष्टमेव हि।।
जो हमें सरलता से प्राप्त है, उसे छोड़कर अप्राप्त की ओर जाता है, उसकी प्राप्त वस्तु नष्ट हो जाती है। अप्राप्त तो मिला ही नही।
यह श्लोक हमने बचपन में पढा था। अब इसका अर्थ समझ में आ रहा है। मोदी जी अपने माता-पिता के साथ उनके अनुभवों को प्राप्त कर चाय बेच रहे और उसमें अपना अनुभव जोड़कर आज भारत देश के प्रधानमंत्री तक पहुच गये। पर मैंने अपने माता-पिता को बेवकूफ समझकर उनकी बातो पर ध्यान नहीं दिया। हमेशा उनसे अलग चलता रहा। आज मैं सामान्य प्राइवेट विद्यालय का शिक्षक के रूप में रिटायर हो गया। ईश्वर ने माता-पिता के रूप में हमें मुफ्त में गुरू प्रदान किया है। इस अनुपम गुरू का हर प्रकार से सम्मान करना चाहिए। ये गुरू हमें जन्म से ही मुफ्त में अनेक प्रकार की शिक्षा अपने अनुभव से देते रहते हैं। इन शिक्षाओं को आत्मसात कर लेने पर ये ही हमारे आगे की शिक्षा के लिए नींव का काम करते हैं। अतः हमें अपने माता पिता की बातों का सम्मान करते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।