बुधवार, 13 मार्च 2013

हे नारी

अति सर्वत्र वर्जयेत्
जगाओ हे नारी, तुम अपना अंतर
कोयला है बाहर, हीरा घर के अंदर।
करो दहलीज पार, याद रखो ये मंतर
हर अच्छी चीज रखो, पर्दे के अंदर।
गुलाब-काँटा, दाँत-जीभ का है जंतर
तलवार भी रहता है, म्यान के अंदर।
ध्यान करो हे नारी, अंतर-मंतर-जंतर
जगाओ हे नारी, तुम अपना अंतर।