शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

सुख समृद्धि के उपाय (संतुलित आहार-विहार)

सुख-समृद्धि के जिन उपायों की चर्चा मैं करने जा रहा हूँ, वे कोई टोने-टोटके या मंत्र-तंत्र से संबंधित नहीं है। ये वे सामान्य बातें हैं, जो हमारे सामान्य जीवन से संबंधित सामान्य बातें ही हैं। जानते हुए भी प्रायः हमसब इनकी उपेक्षा करते रहते हैं। ये हमारे स्वभाव या प्रकृति से संबंधित हैं। इन उपायों को करने में गरीब-अमीर सभी समान रूप से सक्षम हैं। केवल अपनी प्रकृति को अपने वश में करने का अभ्यास करना होगा। तो आइए हम उन उपायों की चर्चा करते हैं।

1. आहार -
सबसे पहले हमें अपने आहार पर नियंत्रण करने का अभ्यास करना होगा। इसके लिए बहुत अधिक श्रम, व्यय या चिंतन की आवश्यकता नहीं होगी। बस इतना ध्यान दें कि हम जो भी भोजन करते हैं, वह सामान्य हो। रोटी, भात, सब्जी समान्य भोजन हैं। इनकी मात्रा अधिक हो और नियमित हो। शेष भोजन, जैसे - फल, मेवा, तैलीय, चटपटा, बाहरी तैयार सामान की मात्रा कम करें और अपनी आर्थिक क्षमता के अंतर्गत ही करें।

इन उपायों से भोजन का खर्च कम तो होगा, साथ ही समृद्धि भी बढ़ेगी। बिमारियाँ कम होंगी, तनाव कम होगा, बजट संतुलित रहेगा। निरोग रहकर अपनी संपत्ति का सही उपयोग कर सकेंगे।

2. रहन -
'आहार' के साथ 'विहार' शब्द का भी प्रयोग होगा है। 'विहार' को सामान्य भाषा में 'रहन-सहन' भी कहा जा सकता है। मैं 'रहन' और 'सहन' की चर्चा अलग-अलग करना चाहता हूँ। अतः पहले 'रहन' की चर्चा करते हैं।

मैं 'रहन' शब्द का अर्थ आपके या हमारे रहने का ढंग से ले रहा हूँ। अतः कृपया मेरे शब्दों से अधिक मेरे अर्थ की ओर ध्यान दें। भोजन पर नियंत्रण के साथ-साथ हमारे अपने रहने का तरीका या ऐसा कहें हमारे सामान्य जीवन से संबंधित कार्यशैली पर नियंत्रण करना होगा। प्रत्येक कार्य को करने के लिए एक निश्चित विधि का चुनाव करें। इससे आपकी स्मृति बढ़ेगी। कार्य में निखार आएगा। गति में भी वृद्धि होगी। बार-बार विधि बदलने पर कार्यक्षमता घटती है और कार्य के प्रति अरुचि भी होने लगती है। इस प्रकिया का उपयोग हर कार्य में करें। एक-दो सामान्य उदाहरण देता हूँ -
  1. एक विद्यार्थी अब पढ़ाई करना चहता है। विधि होगी - 1. पढ़ाई के लिए स्थान निश्चित करना, 2. पढ़ने के लिए विषय निश्चित करना, 3. उस विषय से संबंधित कॉपी-किताब-कलम-पेंसिल एकत्र करना, 4. अंत में निश्चित स्थान पर बैठकर पढ़ाई आरंभ करना।
  2. एक गृहिणी सब्जी बनाना चाहती है। विधि होगी - 1. उनके पास क्या सब्जी है, देखना, 2. इच्छित सब्जी का चुनाव करना, 3. उन्हें धो-काटकर तैयार करना, 4. तेल-मशाला, बरतन एकत्र करना, 5. चूल्हा जलाना और सब्जी बनाना आरंभ करना।
इसी प्रकार हर कार्य को करने के लिए एक विधि को क्रमशः प्रयोग में लायें। बार-बार विधि न बदलें, विधि का क्रम भी न बदलें। इससे आपके कार्य में निखार आएगा, स्मृति बढ़ेगी, कार्य सही होगा, गलितयाँ आसानी से पहचान कर कार्यविधि में सुधार भी कर सकेंगे।

ऑफिस जाना है, भोजन करना है, कपड़े धोने हैं, घर सफाई करना है - कोई कार्य हो, पहले विधि का चुनाव या निर्माण कर लें। फिर उस विधि से ही हमेशा काम करें।

3. सहन -
'सहन' का अर्थ भी कृपया मेरे ढंग से समझने की कोशिश करेंगे। 'सहन' शब्द से 'सहना' शब्द बनता है। अपने स्वभाव के विपरीत होने पर भी उसे मान लेना - 'सहना' कहलाता है। हम अनेकों कार्य अपने स्वभाव के अनुकूल ही करते हैं। जो मुझे अच्छा लगता है, मैं करूँगा। जो मुझे बुरा लगता है, उसे नहीं करूँगा। मुझे मिठाई अच्छी लगती है, मैं खाऊँगा। ठूँस कर खाऊँगा। कल बीमार हो जाऊँगा। कोई गम नहीं।

ऐसा कैसे चलेगा? कोई गम नहीं? यहाँ मिठाई नहीं खाना या कम खाना, मेरे स्वभाव के विपरीत है। पर मुझे अपने ऊपर नियंत्रण करना होगा। तभी हम सुखी हो सकेंगे।

अनेक स्थानों पर हमें अपने स्वभाव पर नियंत्रण करने की आवश्यकता है। बाजार में सामान खरीदते समय, पॉकेट में पैसे रहने पर खर्च करने में, अपने पास समय रहने पर कार्य का चुनाव करने में आदि। कुछ स्थानों पर अपनी आवश्यकता के लिए वैकल्पिक सामान का भी चुनाव किया जा सकता है। जैसे - टीवी, शो केस, आलमारी, पलंग आदि। टीवी बड़ा लेना या छोटा, अपने कमरे के अनुसार ही लेना। पढ़ाई ज्यादा जरूरी है तो टीवी रंगीन न भी हो तो चलेगा या अभी नहीं लेने से भी चल सकता है।
इन उपायों को अपने घर में लागू करने के लिए मैं पिछले 20 वर्षों से कार्यरत हूँ। पर आज तक पूर्ण सफल नहीं हो पाया। शायद मेरे घर में अनुकूल वातावरण नहीं। फिर भी यह चर्चा मैं आप सबसे कर रहा हूँ। शायद, आपके घर का वातावरण इन उपायों उपयुक्त हो और आपकी सुख-समृद्धि में निरंतर वृद्धि होने लगे। यदि ऐसा हुआ तो कृपया मुझे धन्यवाद देना न भूलें।

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