बुधवार, 2 अप्रैल 2014

समस्या औरतों की...

आज के समय में हर ओर से नारे उठ रहे हैं कि नर-नारी को समान समझना चाहिए। दोनों को बराबर अधिकार मिलना चाहिए। दोनों में भेद-भाव नहीं करना चाहिए। नारी को तो किसी मामले में कम नहीं समझना चाहिए।
मेरे मन में से सवाल आता है कि ये सब बातें कैसे आईं कि नर-नारी को समान होना चाहिए। किसके मन में यह भाव आया कि हिन्दू समाज में नारी के महत्त्व को कम आँका जा रही है। नारी को अधिकार कम मिल रहा है।
जब नर-नारी को ईश्वर ने एक नहीं बनाया तो हमारी क्या औकात है। फिर भेद-भाव भी रहेगा ही। पैंट – पैंट है और शर्ट – शर्ट। पैंट की जगह शर्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और शर्ट की जगह पैंट का इस्तेमाल भी नहीं किया जा सकता। उसी प्रकार नर-नारी के तन-मन, स्वभाव, रुचियाँ आदि अलग-अलग होती हैं।
प्रकृति ने नारियों को पुरुषों के विपरीत सौन्दर्य और कोमलता दी है। नारी अपने सौन्दर्य और कोमलता से सारे संसार को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है। सारे संसार को अपने वश में कर सकती है। पर  बुद्धि के मामले में वह हमेशा दूसरों की नकल ही करती है। नकल करके दिखावा करती है कि मैं किसी से कम नहीं। उसके पास दस साड़ियाँ हैं तो मेरे पास ग्यारह तो होनी ही चाहिए। उसके पास दो प्रेशर कूकर है तो मेरे पास बड़े-बड़े दो प्रेशर कूकर होने चाहिए। उसने अपने बाल फलाँ तेल से चमकाये हैं तो मैं ये तेल लूँगी। वह जींस पहनती है तो क्या मैं उससे कम हूँ। और इसी दिखावे के चक्कर में आज की नारी नंगी हो गई। आजकल मोबाईल, टीवी, इण्टरनेट में इसकी होड़ लग गई है कि कौन कितना सेक्सी और हॉट है।
हाँ, लेकिन से बात और मजेदार है। आज की नारियों ने पुरुषों को इतना हद तक आकर्षित किया है कि उनकी बुद्धि और शक्ति धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही है। अब वे भी अखाड़े की माटी छोड़ तरह-तरह के क्रीम और परफ्यूम का उपयोग करने लगे हैं। घर-परिवार, समाज सब कुछ भूलकर रात-दिन सेक्सी और हॉट के चक्कर में घूमने लगे हैं।
हमारे एक पड़ोसी की पत्नी ने अपने पति को किसी दूसरे स्त्री के बारे में कहते हुए सुन लिया कि वे बड़ी सेक्सी लगती हैं। बस पाँच दिन से पति-पत्नी की बातचीत बंद है। सुना है अब उनकी पत्नी सेक्सी बनने के लिए कोई कोर्स कर रही हैं।
पहले नारी को शक्ति मानकर पूजा जाता था। आज भी उसी परंपरा के अंतर्गत कन्या भोज कराकर उनकी पूजा की जाती है। यह बात स्पष्ट बताई जाती है कि नारी के बिना पुरुषों का कोई अस्तित्व नहीं। सीताराम, राधेश्याम, गौरीशंकर आदि नाम भी यही सिद्ध करते हैं कि हमने नारियों को पुरूषों से अधिक सम्मान दिया। पर आज नारियों को हो क्या गया है, जो धर्म को छोड़कर अधर्म का साथ दे रहीं हैं।
आप ही फैसला कीजिए क्या दोनों एक से और समान हैं?

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