सोमवार, 5 मई 2014

शिव-शक्ति


आजकल यह विवाद का विषय हो गया है कि स्त्री-पुरुष में अंतर करना बेवकूफी है। तो क्या स्त्री-पुरुष को एक समझना बुद्धिमानी है। ये कहना तो सही है कि दोनों को समान आदर मिलना चाहिए। पर मौलिक रूप से स्त्री-पुरुष भिन्न होते हैं।
शारीरिक रूप से भिन्नताओं का अनुभव चित्रकारों को स्पष्ट पता है। आँख, होठ, छाती, कमर, कूल्हे, हाथ-पैर, कलाई, गाल आदि के बनावट से स्त्री और पुरुष दोनो ही भिन्न होते हैं।
चित्रकारों को रेखांकन करते समय इनका बड़ा ध्यान रखना पड़ता है।
यदि स्वभाव के बारे में जानना हो तो अभिनेताओं से पूछिए। उन्हें स्त्रियों की पात्रता निभाने में दृष्टि, चाल, बोली, अंदाज सभी का ध्यान रखना पड़ता है। यदि कोई पुरुष स्त्री की पात्रता निभा रहा हो तो कितना भद्दा लगता है, क्यों। क्योंकि उसका स्वभाव, शारीरिक सुड़ौलता आदि स्त्री से मेल नहीं खाती। उसी प्रकार जब एक स्त्री अपने को पुरुष-सा दिखने की कोशिश करती है तो कितनी भद्दी लगती है।
दोनों के शारीरिक बनावट और स्वभाव भिन्न हैं, जो जन्म से ही प्रकृति प्रदत्त हैं। इसलिए दोनों को एक जैसा समझना बेवकूफी। दोनों में आसमान-जमीन का अन्तर है। दोनों को समान आदर मिलना चाहिए, पर दोनों का उपयोग समझ-बूझकर करना चाहिए।
स्त्रियों को प्रकृति से सौंदर्य प्राप्त है। अतः उनके सौंदर्य की सुरक्षा भी होनी चाहिए। शायद इसलिए स्त्रियों को घर के हल्के-फुल्के काम सौंपे गये। परंतु परिस्थिति के अनुसार भारी काम भी स्त्रियों ने दुर्गा, काली, लक्ष्मीबाई, दुर्गावती के रूप में किया।
पुरुषों को शारीरिक गठन की दृष्टि से उत्तम समझा गया। अतः उन्हें बाहरी दौड़-धूप और जिसमें अधिक शक्ति की आवश्यकता थी ऐसे कठिन काम सौंपे गये। पुरुषों को पहलवान, योद्धा और अनवरत यात्री के रूप में उपयोग किया गया।
दोनों की विशेषताओं का हिंदुपरंपरा में जितनी सफलता के साथ प्रयोग किया गया उतनी किसी भी परंपरा में नहीं किया गया। दोनों को ही शिवशक्ति कहकर अलग-अलग रूपों में समान आदर दिया गया पर।
आज भी नर और नारी को काम सौंपने में गहन विचार करने की आवश्यकता है। नारी को नर जैसा समझकर उसके साथ नर जैसा बर्ताव करना, उनके खान-पान, पहनावा, कर्तव्य का ध्यान न रखना नारी के प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना ही होगा। इससे भ्रष्टाचार, कदाचार, दुराचार आदि बढ़ेंगे। उनसे हमारी नई पीढ़ी को कौन बचाएगा?