रविवार, 5 मई 2013

भारत विकसित देश कब होगा?

"जानते है पिताजी, आज हमारे सर क्या बता रहे थे?" बेटी कुछ उदास आवाज में बोली।

मैंने उसका चेहरा ध्यान से देखा और उसे उत्साहित करने के लिए पूछा - "क्या?"

"सर बता रहे थे, अभी भी इण्डिया डेवलप्ड कंट्री नहीं है। यहाँ तक कि वर्लड के 200 टॉप कॉलेजों में भी इसका नाम नहीं है।"

बेटी के मन के उठते हुए भावों को मैंने पहचानने की कोशिश की। शायद यह एक हीन भावना थी।

मैंने कहा - "बेटा, असल में हमने अपना स्वाभिमान खो दिया है। हमें लगता है कि जब तक अंग्रेज अपने जूठन नहीं फेंकेगा, तब तक हमें भोजन ही नहीं मिलेगा। यानी हम अभी भी अंग्रेजों के गुलाम ही हैं। फिर गुलामों का देश विकसित कैसे हो सकता है?"

बेटी ने मुझे अजीब निगाहों से देखा और पूछा - "फिर यह देश कैसे विकसित हो सकता है?"

मैंने कहा - "हमें अपना, अपने समाज का और अपने देश का स्वाभिमान जगाना होगा। देखो, तुमने भी अपनी बातों को रखने में कई अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया, जैसे - सर, इण्डिया, डेवलप्ड, कंट्री, वर्ल्ड, टॉप, कॉलेज आदि। जबकि इसके बदले हमारे पास भी अपने हिन्दी के सामान्य और प्रचलित शब्द हैं, जैसे - गुरूजी(आचार्य), भारत(हिन्दुस्तान), विकसित, देश, दुनिया(संसार), उत्तम, विश्वविद्यालय आदि। हमें लगता है हमारे पास मन के भावों को व्यक्त करने के लिए हिन्दी में शब्द ही नहीं हैं। इसी प्रकार हम हर बात के लिए अंग्रेजों के पीछे भाग रहे हैं। तो क्या अंग्रेजों के पीछे भागने से हम विकसित हो जाएंगे, या हमेशा उसके पीछे ही रहेंगे। कम से कम जो हमारे पास पहले से और पर्याप्त मात्रा में है उसके लिए तो अपना स्वाभिमान न खोयें। जब हम यह सीख जायेंगे तो भारत को विकसित देश होने में देर नहीं होगी।"

बेटी ध्यान से सुन रही थी। वह सिर हिलाने लगी, जैसे वह मेरी बात समझ रही हो।

लेकिन मुझे फिर भी संदेह ही था। भारत में पढ़े-लिखे, विद्वान लोगों में अनेक लोगों को यह बात आज भी समझ नहीं आयी है।

हमारे देश का नाम भा-रत है जिसका अर्थ है प्रकाश से परिपूर्ण। कभी भारत को विश्वगूरू का स्थान प्राप्त था। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला आदि विश्वविद्यालय की कहानी सभी जानते है। दुनिया भर के लोग यहाँ विद्याध्ययन के लिए आते थे। आततायी आक्रमणकारियों ने इसे नष्ट कर दी। फिर भी दुनिया के विभिन्न पुस्तकालयों में इसके प्रमाण मिलते हैं। जो संस्कृत के ग्रंथ भारत से लोप हो गए, वे विदेशी पुस्तकालयों में मिलते हैं। फिर भी हमें अपने पर गर्व क्यों नहीं होता?

रामायण और महाभारत, दोनो ही संसार के प्रचीनतम ग्रंथ हैं। दुनिया मानती है। इसमें आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक समस्याओं का एक साथ वर्णन है, जो आज तक दूसरे ग्रंथों में नहीं मिला। ऐसे ग्रंथों को पाकर हमें अपने ऊपर गर्व होना चाहिए।

मनुस्मृति दुनिया की पहली कानूनी पुस्तक है। दशमलव की जानकारी दुनिया को भारत ने ही दी। भारतीय पंचांग के आधार पर सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण की जानकारी प्राचीनतम है। भारतीय दर्शन का संपूर्ण संसार कायल है। फिर भी हम अंग्रेजों के पिट्ठू क्यों बने रहना चाहते हैं।

चिकित्सा विज्ञान में आयुर्वेद की पूरी जानकारी आज हमें भी नहीं है। रामदेव बाबा की कृपा से उस पर भी खोज जारी है। यह भी भारत की प्राचीन विधि है। हमें इस पर गर्व होना चाहिए।

अनेक प्रकार के धन-वैभव, मिट्टी, खनिज, जल, खाद्य, वनस्पति, जीव-जन्तु, मौसम से हमारी भारत भूमि समृद्ध है। इसका हमें गर्व होना चाहिए।

कला के क्षेत्र में अजन्ता-एलोरा की कलायें प्राचीनतम हैं। भारत के अशोक स्तम्भ, मीनाक्षी मंदिर, सूर्यमंदिर की कला और विज्ञान की कल्पना भी करें तो आज के लिए वे चुनौतियाँ हैं।

अपने संस्कार और संस्कृति पर भी हमें गर्व होना चाहिए। हमारे यहाँ के नाते-रिश्ते अटूट होते हैं। विदेशी संस्कृति में तो बेटे-बेटियाँ जवान होते ही माता-पिता को छोड़ अलग हो जाते हैं। पूजा-पाठ के कारण हमारे संस्कार परिष्कृत होते हैं। पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार पार्टियों में गंदे गीत-नृत्य, राक्षसी भोजन आदि परोसे जाते हैं। नाते-रिश्ते को कैसे हैं पता नहीं। जरा विचार करें कि हमें कैसा संस्कार और कैसी संस्कृति चाहिए।

आज शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी का चलन बढ़ता ही जा रहा है। यदि शिक्षा अपनी मातृभाषा या हिन्दी में दी जाए तो हमारी ग्रहणक्षमता में वृद्धि हो सकती है। क्योंकि अंग्रेजी हमारी भाषा नहीं है। अंग्रेजी में शिक्षा पाने के लिए पहले अंग्रेजी सीखनी होगी। अंग्रेजी की पर्याप्त शब्दकोश याद करने होंगे। जबकि मातृभाषा में शिक्षा पाने के लिए घरेलू वातावरण से पर्याप्त शब्दकोश विकसित हो चुका होता है।

अतः हे भारतीयों! मत भूलो कि तुम उस ऋषि-महर्षियों की संतान हो, जिनसे संपूर्ण संसार आलोकित था। जिसके कारण इस भारतभूमि को भा-रत कहा गया। उस सनातन धर्म की अजर-अमर संस्कृति से सिंचित देव पुरुष हो, जिसके सामने सारा संसार नत मस्तक है। आज भारतीय मूल के लोगों ने दुनिया के कोने-कोने से हर क्षेत्र में अखण्ड ज्योति प्रज्ज्वलित कर अपने स्वाभिमान को जगाने का हमें संदेश दे रहे हैं। अपनी भाषा, अपनी परम्परा, अपनी संस्कृति, अपने दर्शन से नाता जोड़कर गर्व का अनुभव करो। अपने को पहचानों। अपने स्वाभिमान को जगाओ। नव स्फूर्ति से परिपूर्ण होकर करवट बदलो। तभी भारत विकसित देश हो सकेगा।

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