गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

दुष्कर्म का विरोध

इतने हो-हल्ला, जुलूस, रैली, गिरफ्तारियों, नियम-कानून बनाने के बाद भी दुष्कर्म बढ़ते ही जा रहे हैं। इससे सामान्य जनता को कुछ सीख तो लेनी ही चाहिए।

पहला यह कि आज कोई कानून हमारी सुरक्षा नहीं कर सकता। हाँ, हमारे साथ कुछ अत्याचार होने के बाद कागजी कारवाई के लिए कानून हमें परेशान करने आ सकते हैं।

दूसरा यह कि हम अपनी सुरक्षा खुद करें। इसके लिए हमें खुद तैयार होना होगा। कौन कैसा व्यक्ति है इसकी पहचान हमें होनी चाहिए। पहचानकर ही दोस्ती करनी चाहिए। कितना ही घनिष्ठ मित्र क्यों न हो, फिर भी उस पर चुपके से नजर अवश्य रखनी चाहिए। अपने शरीर और आत्मा से अपने को बलवान करना होगा। इसके लिए बजरंगबली को गुरू बनायें और हमेशा बजरंगबली की आराधना करें। इस दोहे को याद रखें -

श्री गुरुचरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार। वरनौ रघुवर विमल यश, जो दायक फल चार।
बुद्धिहीन तनु जानिकै, सुमिरहु पवन कुमार। वल, वद्घि, विद्या देहु मोहि हरहु क्लेश विकार।।

बजरंगबली हमें बल-बुद्धि-विद्या तो दें ही साथ ही हमारे मन में उपजने वाले क्लेश और विकार को भी दूर करें।

तीसरा हम सभी (यानी जो इस प्रकार का दुष्कर्म नहीं चाहते हैं) एकजुट हों। एक-दूसरे से प्रेमपूर्वक मिलें। एक-दूसरे की राय लें। अपनी भाषा में सुधार करें। शालीन ढंग से बातचीत करना सीखें। फिल्मी और बाजारू ढंग से बातचीत न करें। अच्छी बात बोलें उसका प्रचार करें।अपने या दूसरे के दिमाग में आनेवाले बुरे विचारों पर रोक लगायें।

चौथा यह कि हमेशा अपने आमने-सामने चौकन्नी नजर रखें। जरा भी संदेह होने पर अपने आमना-सामने के लोगों और मित्रों बतायें। कुछ सामाजिक तरीके से निर्णय लें। फिर सरकारी तंत्र से सहायता लें।

मेरा यह सुझाव स्त्री-पुरुष, छोटे-बड़े सभी के लिए समान है। हमारा समाज हम से ही सुधरेगा। बजरंगबली हम सबकी रक्षा करें। जय बजरंगबली


शनिवार, 20 अप्रैल 2013

बाल मजदूरी

  अनेक वर्षों से बाल-मजदूरी को रोकने के प्रयास चल रहे हैं। सरकारी योजनाएं भी हैं। पर बाल-मजदूरी रोकना संभव नहीं दिखता। गरीब बच्चों को भी भूख लगती है, कपड़े चाहिए, खिलौने चाहिए और घर में भी कुछ सुख-सुविधाएँ चाहिए। उसे प्राप्त करने के लिए नियमित कुछ धनराशि चाहिए। इसके लिए उन्हें मजदूरी करना ही पड़ता है। सरकारी विद्यालय में भोजन और कपड़ा तो मिलता है पर घर की अन्य सुख-सुविधाओं का अभाव रहता ही है। घर के अन्य सदस्यों  पर कोई विचार नहीं होता। 
ऐसी स्थितियों में गाँधी जी का बुनियादी विद्यालय की कल्पना बड़ी अच्छी थी। बच्चों से बागवानी कराना, सूत कतवाना, चरखा चलवाना और साथ-साथ पढ़ाई भी कराना। सरकार को इन गरीब बच्चों के लिए ऐसे विद्यालयों पर ध्यान देना चाहिए, जिसमें मजदूरी के साथ-साथ पढ़ाई भी कर सकें। मजदूरी के लिए एक निश्चित धनराशि भी मिलेगी और सरकारी खातों से भोजन और कपड़े भी मिले। इस कल्पना में और सुधार कर 'रोजगार आधारित शिक्षा' का रूप भी दिया जा सकता है। इस प्रकार की योजना से सरकार अवश्य 60% जनता की भलाई कर सकती है।