शनिवार, 20 अप्रैल 2013

बाल मजदूरी

  अनेक वर्षों से बाल-मजदूरी को रोकने के प्रयास चल रहे हैं। सरकारी योजनाएं भी हैं। पर बाल-मजदूरी रोकना संभव नहीं दिखता। गरीब बच्चों को भी भूख लगती है, कपड़े चाहिए, खिलौने चाहिए और घर में भी कुछ सुख-सुविधाएँ चाहिए। उसे प्राप्त करने के लिए नियमित कुछ धनराशि चाहिए। इसके लिए उन्हें मजदूरी करना ही पड़ता है। सरकारी विद्यालय में भोजन और कपड़ा तो मिलता है पर घर की अन्य सुख-सुविधाओं का अभाव रहता ही है। घर के अन्य सदस्यों  पर कोई विचार नहीं होता। 
ऐसी स्थितियों में गाँधी जी का बुनियादी विद्यालय की कल्पना बड़ी अच्छी थी। बच्चों से बागवानी कराना, सूत कतवाना, चरखा चलवाना और साथ-साथ पढ़ाई भी कराना। सरकार को इन गरीब बच्चों के लिए ऐसे विद्यालयों पर ध्यान देना चाहिए, जिसमें मजदूरी के साथ-साथ पढ़ाई भी कर सकें। मजदूरी के लिए एक निश्चित धनराशि भी मिलेगी और सरकारी खातों से भोजन और कपड़े भी मिले। इस कल्पना में और सुधार कर 'रोजगार आधारित शिक्षा' का रूप भी दिया जा सकता है। इस प्रकार की योजना से सरकार अवश्य 60% जनता की भलाई कर सकती है।

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