रविवार, 14 मई 2017

मुफ्त की नसीहत

ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणि निषेवते।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवाणि नष्टमेव हि।।

जो हमें सरलता से प्राप्त है, उसे छोड़कर अप्राप्त की ओर जाता है, उसकी प्राप्त वस्तु नष्ट हो जाती है। अप्राप्त तो मिला ही नही।

यह श्लोक हमने बचपन में पढा था। अब इसका अर्थ समझ में आ रहा है। मोदी जी अपने माता-पिता के साथ उनके अनुभवों को प्राप्त कर चाय बेच रहे और उसमें अपना अनुभव जोड़कर आज भारत देश के प्रधानमंत्री तक पहुच गये। पर मैंने अपने माता-पिता को बेवकूफ समझकर उनकी बातो पर ध्यान नहीं दिया। हमेशा उनसे अलग चलता रहा। आज मैं सामान्य प्राइवेट विद्यालय का शिक्षक के रूप में रिटायर हो गया। ईश्वर ने माता-पिता के रूप में हमें मुफ्त में गुरू प्रदान किया है। इस अनुपम गुरू का हर प्रकार से सम्मान करना चाहिए। ये गुरू हमें जन्म से ही मुफ्त में अनेक प्रकार की शिक्षा अपने अनुभव से देते रहते हैं। इन शिक्षाओं को आत्मसात कर लेने पर ये ही हमारे आगे की शिक्षा के लिए नींव का काम करते हैं। अतः हमें अपने माता पिता की बातों का सम्मान करते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।

परफ्सूम की जरूरत

हम गरीब मेहनत करके पसीना बहाते हैं। पसीने की कमाई खाते हैं। मेहनती लोगों के पसीने से हमें खुशबू मिलती हैं। इसलिए हमें एक-दूसरे से मिलने के लिए परफ्यूम की जरूरत नहीं पड़ती। पर अमीरजादे पता नहीं क्या खाते हैं, क्या करते हैं कि उनकी बदबू सहन नहीं होती। वे अपनी बदबू परफ्यूम मार-मार कर छिपाते रहते हैं।

इज्जत और नफरत

टीचर ने एक बच्चे से कहा - राजू हल्ला मत करो। राजू थोड़ी देर बैठा रहा। फिर खड़ा हो गया। टीचर फिर चिल्लाई - राजू, खड़े क्यों हो गये! बैठो। राजू फिर बैठ गया। बैठे-बैठे उसे कुछ काम नहीं सूझा तो आगे बैठे बच्चे को चिकोटी काट ली। वह बच्चा रोने लगा।

टीचर को राजू पर बहुत गुस्सा आया और टीचर ने राजू को दो-चार चपत जड़ दी। गुस्से में वो बोली - राजू, तुम बहुत बदमाश हो गये हो।

पर राजू सोच रहा था। टीचर भी बड़ी अजीब है। उन्होंने कहा हल्ला मत करो तो मैं चुप हो गया। टीचर ने मुझे बैठने कहा तो मैं बैठ गया। अब जरा मजा लेने को आगे वाले को चिकोटी काट ली टीचर ने बबाल मचा दिया। क्या मैं अपने मन से कुछ भी नहीं कर सकता। मेरी तो कोई इज्जत ही नहीं है।

यदि हम राजू की भावना को समझे बिना उससे यही व्यवहार करते रहे तो उसके मन मे टीचर के प्रति डर समा जायगा। यही डर आगे चलकर क्रोध और विरोध का रूप लेता है। फिर वह अपने टीचर से नफरत करने लगता है।