शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

विद्या ददाति विनयम्

विद्या विनय देती है। विद्या का अर्थ है किसी कला की जानकारी। विनय का अर्थ है नम्रता या घमंड का अभाव। विद्या हमें झुकना सिखाती है। मूर्ति कला, चित्रकला, पाककला, गाने की कला आदि कलाओं में बड़ा सावधानीपूर्वक काम करने की जरूरत है। "मैं जानता हूँ" - ऐसी भावना रखने वाले किसी भी विद्या मे निपुण नहीं हो सकता। यानी "विद्या ददाति विनयम्"।

जो नम्र है, उसकी सभी इज्जत करते हैं। जिसे घमंड है, सभी उसकी निन्दा करते हैं। इसलिए सभी नम्र लोगों का साथ चाहते हैं और घमंडी लोगों से दूर रहना चाहते हैं। यही पात्रता है। यानी - "विनयाद्याति  पात्रत्वाम" ।

जिसकी इज्जत होती है, उसपर विश्वास होता है। उसे लोग अनेक प्रकार की जिम्मेदारी सौंपते हैं। उन्हें अनेक प्रकार के काम सीखने तो मिलता है। काम करने पर धन की प्राप्ति होती है। अतः पात्रता से धन प्राप्त होता है। यानी "पात्रत्वाद् धनमाप्नोति"।

जब पास में धन हो तो हम दान-पुण्य कर सकते हैं। यानी "धनाद्धर्मं "।

अधर्म यानी दूसरे को दुख देना। दूसरे को दुख देने में अपने को भी सुख होनेवाला नहीं है। अतः सुख तो धर्म से ही होता है। अर्थात्

विद्या ददाति विनयमं विनयाद्याति पात्रत्वाम्।
पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्।।

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

खुशी

मैं पेड़ को नीचे खड़ा हूँ । सामने की एक दुकान पर एक

वृद्ध व्यक्ति अपने नन्हें पोते को पाँच रूपये का रसगुल्ला खिला रहा है। पोता बड़ा खुश है और बड़े मजे ले-लेकर खा रहा है। कुछ लोग उस बच्चे की क्रिया-कलाप को देखकर खुश हैं।

बगल में सायकिल दुकान है। मिस्त्री ने सायकिल मरम्मत कर दी है। सायकिल वाले ने खुश होकर उसे शायद कुछ ज्यादा ही पैसे दे दिये या पुराना हिसाब भी चुकती  कर दिया होगा। दुकानदार भी बड़ा खुश नजर आ रहा है ।

कुछ विद्यार्थी सड़क पर आपस में बड़े जोश में बातें करते हुए आ रहे हैं। वे भी बड़े खुश नजर आ रहे हैं। हाव-भाव से लगता है वे परीक्षा देकर आ रहे हैं और परीक्षा अच्छी गयी है।

अचानक मेरी बुद्धि चकराने लगी। आखिर खुशी क्या चीज है?