शनिवार, 16 जुलाई 2016

बच्चे मन के सच्चे

      मैं अरुण कक्षा में पढ़ा रहा था। श्यामपट पर लिख दिया दिया था - अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः। फिर एक लम्बी छड़ी से प्रत्येक अक्षरों को इंगित करते हुए उसकी कविता बोल रहा था। "अनार मीठा खूब खाओ....." बच्चे उन्हें दुहरा रहे थे। इस प्रकार अ से अः तक की कविता मैंने पूरी पढ़ा दी। 
      तभी एक शिशु अपने बेंच से उठा। मैंने उसकी ओर देखा। वह सीधा चलते हुए मेरे सामने आ कर खड़ा हो गया। मैं बड़ी उत्सुकता से उसकी ओर देख रहा था। उसने मुझसे छड़ी माँगी। मैंने सोचा वह भी मेरी तरह पढ़ाना चाहता है। बच्चे तो नकल करते ही हैं। मैंने उसे छड़ी दे दी। उसने वह छड़ी पकड़ी और मेरे जाँघ पर एक छड़ी हल्के से लगाई फिर कहा - आप एक गलती किए थे। फिर वह अपने जगह जाकर बैठ गया। 
      मैं उसे कुछ देर तक अवाक देखता रह गया। बाद में मुझे याद आया कि मैंने एक पंक्ति "ईख उठाकर यहाँ ले आओ" को "ईख तोड़कर यहाँ ले आओ" कह दिया था। फिर मुझे हँसी आ गई। घंटी बज चुकी थी इसलिए मैं कक्षा से बाहर निकल गया। क्या आप इस घटना का कुछ विष्लेशन करना चाहेंगे।

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