गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

माँ दुर्गा का स्वरूप

       










महिषासुर के आतंक से त्राही-त्राहि कर उठे देव और मानवों ने अपनी सामूहिक शक्ति से माता दुर्गा को उत्पन्न किया। उन्हें सभी देवताओं ने अपने-अपने शक्तिशाली आयुध सौंपे। माता दुर्गा ने फिर शेर पर सवार हो भयंकर रूप लेकर महिषासुर का वध किया। तब से चली आ रही यह दुर्गा पूजा हम हिन्दुओं में एकता की शक्ति के रूप में पूजित हो रही हैं। रावण पर विजय पाने के लिए राम ने भी वानर-भालू, वनवासी आदि को एकत्र कर माँ दुर्गा की पूजा दिन की।
        आज हम भी उस सामाजिक एकता की शक्ति देवी दुर्गा की आराधना बड़े मनोयोग से करते हैं।
हमारे सिन्दरी-शहरपुरा के मुख्य क्षेत्र में, लगभग दो कि.मी. के अंदर 12 दुर्गा की प्रतिमा का प्रतिष्ठापन हुआ है, जहाँ सप्तमी से दशमी तक लगातार पूजा धूम धाम से होगी।
        पर मेरे मन में एक सन्देह हो गया है। सभी पांडाल वालों के मन में कुछ बातें रहती हैं, जैसे -
"मेरी दुर्गाजी यहाँ हैं।"
"मैं उनलोगों के साथ दुर्गापूजा नही कर सकता।"
"हमारी मूर्त्ति और पांडाल उनसे अच्छा है।"
"हमलोगों की पूजा अच्छी है। वे लोग तो चोर हैं।"
"लोगों से चंदा दबाव देकर लेना पड़ता है।"
"हमें चंदा अधिक लेना है। चाहे जैसे हो।"

      इससे मुझे लगता है माँ दुर्गा एकता के लिए नहीं लोगों को खंडित करने के लिए है।

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