रविवार, 28 मार्च 2021

तपस्या

हमारे प्राचीन महर्षियों ने कठिन तपस्या के द्वारा कठिन कार्यों को भी सरल कर दिया। तपस्या यानी किसी कार्य को करने का बार-बार अभ्यास करते हुए उसमें सिद्धि प्राप्त करना। किसी कार्य को नियमित एक निश्चित नियम से करते रहने से सिद्धि प्राप्त होती है। नियमित से अर्थ है प्रतिदिन एक निश्चित समय मे निश्चित समय तक लगातार नियम से अभ्यास करना।

महापुरुषों ने अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कठिन तपस्या की। लक्ष्य अलग-अलग हो सकते हैं। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए साधन की जरूरत होती है। साधन जुटाने के लिए लक्ष्य तक पहुंचने का पथ निर्धारित होना चाहिए। पथ में आने वाले कठिनाइयों की जानकारी होनी चाहिए। कठिनाइयों के निवारण के लिए साधनों के साथ तैयारी चाहिए। सब तैयारी के बाद लक्ष्य प्राप्ति के लिए यात्रा प्रारंभ करने से पहले योजना तैयार करे फिर ईश्वर का नाम लेकर यात्रा आरंभ करें।

अब एक आवश्यक प्रश्न - "लक्ष्य कैसा हो?"।

कहते हैं, मनुष्य के मन में अनेक आकांक्षाएं होती है। सभी आकांक्षाओं को तीन विभाग में रखा जा सकता है - वित्तेष्णा, लोकेष्णा और पुत्तेष्णा। इन तीनों विभागों को भी दो भागों में विभाजित किया जा सकता है - लोक कल्याण और आत्म कल्याण।

अलग-अलग लोगों की आकांक्षाएं अलग-अलग हो सकती हैं। किसी के लिए धन कुछ भी कर सकता है, कोई अपनी प्रसिद्धि जरूरी समझता है, पर कोई पुत्र के लिए दर-दर भटकता है। लेकिन मेरे विचार से लक्ष्य लोक कल्याण के लिए ही होना चाहिए। इससे दुनिया स्वर्ग की भाँति सुन्दर लगने लगेगा।






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