रविवार, 7 अक्तूबर 2018

डंडा वाले आचार्यजी

    आज मेरी तबियत कुछ गड़बड़ थी मैंने एक आचार्य से आग्रह किया कि वे कुछ देर मेरी कक्षा में रहें। आचार्य जी तैयार हो गये। जैसे ही वे मेरी कक्षा में पहुँचे, सभी बच्चे उन्हें आश्चर्य से देखने लगे। एक बच्चा रोनी-सी सूरत बनाते हुए बोला - "आचार्य जी, आपकी घंटी नही है।" आचार्य जी बोले - "अरे, तो क्या हुआ? आज तो हम्हीं पढ़ायेंगे।" "नहीं आचार्य जी, आप जाइये। अभी वो आचार्यजी आयेंगे।" - सभी बच्चे एक साथ चिल्लाये।

     अब चौकने की बारी आचार्य जी की थी। उन्होंने पूछा - "कौन आचार्यजी।" 

    एक बच्चे ने कहा - "डंटा वाले आचार्य जी।" आचार्यजी अभी कुछ सोच रहे थे कि मैं वहाँ अपने हाथ में छड़ी लिए पहुँचा। आचार्यजी ने मेरी छड़ी को ध्यान से देखा और कहा - "आप ही हैं डंडा वाले आचार्य जी?" तब आचार्य जी ने मुझे सारी घटना बताई।

    मैंने कहा - डंडा वाले आचार्य जी से बच्चे नहीं डरते हैं, बिना डंडा वाले आचार्य जी से डरते हैं। बच्चे आचार्य का डंडा ही नहीं देखते उनके भाव को भी पहचानते हैं। पर औरों को केवल डंडा ही दिखता है।

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