सोमवार, 12 फ़रवरी 2024

 माता-पिता की सेवा: एक पुनीत कर्म

माता-पिता की सेवा न केवल एक पुनीत कर्म है, बल्कि यह हमारी संस्कृति और परंपरा का भी अभिन्न अंग है। यह एक ऐसा कर्म है जो हमें अनेक लाभ प्रदान करता है, जिनमें परंपरा जीवित रखना, एकता और व्यवस्था मजबूत बनाना, तेज गति से उन्नति करना, अपना, अपने परिवार और मानव समाज का भला करना शामिल हैं।

माता-पिता की सेवा का महत्त्व अत्यधिक है, क्योंकि इससे परंपरा, एकता, व्यवस्था, और समाज का समृद्धि में सहारा मिलता है। यह संबंध एक परिवार की ओज को बनाए रखने में मदद करता है और समाज को सामंजस्य और विकसित बनाए रखने में सहायक होता है।

हम सभी का जीवन हमारे माता- पिता की देन ही हैं. ईश्वर द्वारा प्रदत्त बेशकीमती उपहारों में से एक हमारे माँ बाप होते हैं. हमें अपने जीवन के प्रत्येक मोड़ पर उनके साथ और आशीर्वाद की जरूरत रहती हैं.जब से इस धरती पर हमारा अस्तित्व शुरू होता हैं। उससे पूर्व नौ माह तक माँ हमें अपने गर्भ में रखती हैं पोषण देती हैं तथा पाल पोसकर बड़ा करती हैं और बाद में विवाह होने तक माँ ही एक नौकरानी की तरह अपनी संतान की सेवा करती रहती है।

पिता हमारी उन्नति के लिए जन, मन, धन और शरीर से हमेशा हर संभव प्रयास करते रहते हैं। अपने तन पर भले ही उचित वस्त्र न हो पर संतान को अपने से सुन्दर वस्त्र देते हैं। स्वयं भले ही न खायें पर संतान की पेट कभी खाली नहीं रहने देते।संतान की सुख-सुविधा के लिए बारह घंटे से ज्यादा परिश्रम करते रहते हैं।

अतः आज जो भी हैं सिर्फ माता-पिता की वजह से हैं। माता पिता हमें एक अच्छे दोस्त की तरह समझ सकते हैं और माता-पिता तब तक हमारा साथ नहीं छोड़ते हैं जब तक हम कुछ अच्छा न करने लगें, यानी अपने पैरों पर खड़े ना हो जाएं।

मनुष्य का जीवन अनेक उतार-चढ़ावों से होकर गुजरता है। उसकी नवजात शिशु अवस्था से लेकर विद्यार्थी जीवन, फिर गृहस्थ जीवन तत्पश्चात् मृत्यु तक वह अनेक प्रकार के अनुभवों से गुजरता है। अपने जीवन में वह अनेक प्रकार के कार्यों व उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है। परंतु अपने माता-पिता के प्रति कर्त्तव्य व उत्तरदायित्वों को वह जीवन पर्यत नहीं चुका सकता है। माता-पिता से संतान को जो कुछ भी प्राप्त होता है वह अमूल्य है। माँ की ममता व स्नेह तथा पिता का अनुशासन किसी भी मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण में सबसे प्रमुख भूमिका रखते हैं। माँ की गोदी में बालक स्वयं को सबसे अधिक सुरक्षित और गौरवशाली महसूस करता हैं। केवल माँ बाप ही बिना किसी पूर्व शर्त के हमारी देखभाल करते है तथा खुद हजारों कष्ट सहनकर भी हमें पैरों पर खड़ा होने के लायक बनाते हैं। हमारा भी उनके प्रति दायित्व हैं कि हम अपने माता-पिता का सम्मान करें उनकी केयर करें।

परंपरा जीवित रखना

माता-पिता की सेवा हमारी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। हमारे पूर्वजों ने हमेशा माता-पिता को सम्मान और आदर देने की शिक्षा दी है। उनकी सेवा करके हम उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और अपनी संस्कृति के मूल्यों को आगे बढ़ाते हैं।

एक स्थिर परिवार जिसमें माता-पिता अपने बच्चों को सही मार्गदर्शन करते हैं, वहां परंपरा स्थिर रहती है। बच्चे अपने माता-पिता से अच्छी संस्कृति, मौलिकता और उच्च मौखिक परंपरा को सीखते हैं और इसे अपने आगे के पीढ़ियों में बढ़ाते हैं।

हम जिस घर में रहते हैं वह पिता ने बनाया होता है. जिस नाम से हम जाने जाते हैं उसमें सबसे पहला नाम माँ-पिता ने रखा है। आप अपने माता पिता का सम्मान करेंगे तभी आपके बच्चे आपकी इज्जत करेंगे. इससे हमारे देश में विराजमान संस्कृति हमेशा बनी रहेगी।

अत: हम जीवन पथ पर चाहे किसी भी ऊँचाई पर पहुँचें हमें कभी भी अपने माता-पिता के सहयोग, उनके त्याग और बलिदान को नहीं भूलना चाहिए। हमारी खुशियों व उन्नति के पीछे हमारे माता-पिता की अनगिनत खुशियों का परित्याग निहित होता है। अत: हमारा यह परम दायित्व बनता है कि हम उन्हें पूर्ण सम्मान प्रदान करें और जहाँ तक संभव हो सके खुशियाँ प्रदान करने की चेष्टा करें।

हमारी अनेक गलतियों व अपराधों को वे कष्ट सहते हुए भी क्षमा करते हैं और सदैव हमारे हितों को ध्यान में रखते हुए सद्‌मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करते हैं । पिता का अनुशासन हमें कुसंगति के मार्ग पर चलने से रोकता है एवं सदैव विकास व प्रगति के पथ पर चलने की प्रेरणा देता है ।

यदि कोई डॉक्टर, इंजीनियर व उच्च पदों पर आसीन होता है तो उसके पीछे उसके माता-पिता का त्याग, बलिदान व उनकी प्रेरणा की शक्ति निहित होती है। यदि प्रांरभ से ही माता-पिता से उसे सही सीख व प्ररेणा नहीं मिली होती तो संभवत: समाज में उसे वह प्रतिष्ठा व सम्मान प्राप्त नहीं होता। कहा भी गया है कि माता-पिता संतानों के प्रथम गुरू होते हैं। 

एकता और व्यवस्था मजबूत बनाना:

माता-पिता परिवार के स्तंभ होते हैं। उनकी सेवा करके हम परिवार में एकता और व्यवस्था को मजबूत बनाते हैं। जब हम अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, तो यह हमारे बच्चों के लिए भी प्रेरणा बनता है।

एकता और व्यवस्था मजबूत बनाना भी माता-पिता की सेवा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। जब परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे के साथ मिलजुलकर काम करते हैं और समस्त प्रणालियों को सही तरीके से चलाते हैं, तो एकता बनी रहती है और व्यवस्था में सुधार होता है। माता-पिता के अच्छे नेतृत्व में परिवार का अनुशासित रहता है और सफल व्यवस्था रहती है। एक बालक के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण योगदान माता-पिता का होता हैं। भले ही वे बालक बड़े होकर उनका सम्मान आदर व सेवा करे या नहीं करें. परन्तु वे सदैव उन्हें शुभाशीष ही देते हैं। बालक मानसिक और शारीरिक रूप से समग्र विकास को प्राप्त करें इसके लिए अभावों में गुजारा करके भी अभिभावक झूठी मुस्कान के द्वारा भी अपनी सन्तान को अभाव का आभास नहीं होने देते हैं।

तेज गति से उन्नति करना:

माता-पिता का आशीर्वाद हमारे जीवन में सफलता और उन्नति के लिए महत्वपूर्ण होता है। उनकी सेवा करके हम उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जिससे हमें जीवन में तेज गति से आगे बढ़ने में मदद मिलती है। तेज गति से उन्नति करना भी माता-पिता की सेवा का एक बड़ा लाभ है। जब माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा, मार्गदर्शन और साथीपन के साथ प्रेरित करते हैं, तो उनकी क्षमताएं और संभावनाएं बढ़ती हैं। इससे बच्चे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफलता प्राप्त करने के लिए तैयार होते हैं और समाज में उन्नति की ओर बढ़ते हैं। हमारे माता-पिता सदैव हमारी सफलता और समृद्धि की कामना करते हैं. हमारी ख़ुशी और सफलता में ही उनकी ख़ुशी दिखती हैं. अपने जीवन के सर्वोच्च सुखों का बलिदान देकर यहाँ तक कि स्वयं भूखे पेट सोकर माँ बाप अपनी सन्तान का पालन पोषण करते हैं।

कहते हैं कभी हमारे पूर्वज बन्दर रहे होंगे। पर आज मानव धीरे-धीरे पूर्वजों के अनुभवों का संग्रह के विकास द्वारा ही उन्नति कर पाया है। उसी प्रकार हमारे जीवन में अपने माता-पिता के अनुभव ही हमारी पूंजी है। उसे ही और विकसित करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। अपने पास पूँजी हो तो उससे उन्नति करना आसान होता है। इसी प्रकार हमारी परंपरा भी हमारी पूँजी होती है और ये पूँजी हमारे ऋषि-महर्षियों के अनुभवों का सार है। इन अनुभवों के आधार पर मानव और अधिक उन्नति कर सकता है जैसे - नींव के ऊपर घर बनाये जाते हैं। 

अपना, अपने परिवार और मानव समाज का भला करना:

माता-पिता की सेवा करके हम न केवल अपना भला करते हैं, बल्कि अपने परिवार और मानव समाज का भी भला करते हैं। जब हम एक दूसरे के माता-पिता का सम्मान करते हैं, तो यह एक समृद्ध और खुशहाल समाज के निर्माण में योगदान देता है। कहते हैं देखादेखी पुण्य और देखादेखी पाप। हमारे घर का अनुशासन, संस्कृति, परंपरा आदि लोगों को अच्छा लगा तो वे भी उसे अपनायेंगे। हमारे परिवार का सम्मान बढ़ेगा। हमारे पास-पड़ोस को खुश देखकर गाँव और देश का सम्मान बढेगा।

माता-पिता की सेवा समाज के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है जो संसार को सुख-शांति, समृद्धि और एकता की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करता है। यह एक सुदृढ़ परिवार की नींव रखता है।

 

निष्कर्ष:

माता-पिता की सेवा एक पुनीत कर्म है जो हमें अनेक लाभ प्रदान करता है। हमें अपने माता-पिता की सेवा करने का सदैव प्रयास करना चाहिए। मनुष्य का जीवन अनेक उतार-चढ़ावों से होकर गुजरता है । उसकी नवजात शिशु अवस्था से लेकर विद्‌यार्थी जीवन, फिर गृहस्थ जीवन तत्पश्चात् मृत्यु तक वह अनेक प्रकार के अनुभवों से गुजरता है ।

अपने जीवन में वह अनेक प्रकार के कार्यों व उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है। परंतु अपने माता-पिता के प्रति कर्त्तव्य व उत्तरदायित्वों को वह जीवन पर्यत नहीं चुका सकता है । माता-पिता से संतान को जो कुछ भी प्राप्त होता है वह अमूल्य है। माँ की ममता व स्नेह तथा पिता का अनुशासन किसी भी मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण में सबसे प्रमुख भूमिका रखते हैं । 

माता-पिता का सम्मान :

हम अपने माता-पिता का सम्मान और उनकी सेवा कर सकते हैं इन तरीकों से कर सकते हैं:

भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार अपने माता-पिता को सवेरे उठकर उनके चरण छू कर आशीर्वाद लें।

उनकी बातों का सम्मान करें।

कभी भी उनकी बातों का जवाब ऊँची आवाज में न दें।

उनकी देखभाल करें।

उनकी जरूरतों को पूरा करें।

उनके साथ समय बिताएं।

उन्हें प्यार और स्नेह दें।

उनके कामों में हाथ बटायें।

उनके नाम को गौरवान्वित करे।

हमसे ऐसा कोई भी गलत कार्य न हो जिससे उन्हें लोगों के सम्मुख शर्मिंदा होना पड़े ।

हम अपनी लगन, मेहनत और परिश्रम के द्वारा उच्चकोटि का कार्य करें जिससे हमारे माता-पिता गौरवान्वित हो।

अत: हम सबका उनके प्रति यह दायित्व बनता है कि हम सदैव यह ध्यान रखें कि हमारी प्राचीन शिक्षा में पेरेंट्स और बड़े बूढों को सम्मान देने की परम्परा और आदर्श पुराने समय के समाज में थे। मगर आधुनिक पाश्चात्य विचारों से प्रेरित हमारी शिक्षा व्यवस्था में बच्चों और पेरेंट्स के उन गहरे रिश्तों को परिभाषित करने में पूर्णतया विफल रही हैं। माता-पिता की सेवा करना ही एक ऐसा कर्म है जो हमें जीवन में सच्चा सुख और आनंद देता है।